शासन के अंग – Organs Of The Government

किसी भी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद शासन स्तर उसके सामने कई चुनौतियां होती है जैसे कानूनों का निर्माण या संशोधन , कानूनों को लागू करवाना तथा उसी कानूनी प्रक्रिया के अनुसार झगड़ों व विवादों का निपटारा ।
किसी भी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद शासन स्तर उसके सामने कई चुनौतियां होती है जैसे कानूनों का निर्माण या संशोधन , कानूनों को लागू करवाना तथा उसी कानूनी प्रक्रिया के अनुसार झगड़ों व विवादों का निपटारा ।
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शासन के अंग (Organs of Government)

किसी भी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद शासन स्तर उसके सामने कई चुनौतियां होती है जैसे कानूनों का निर्माण या संशोधन , कानूनों को लागू करवाना तथा उसी कानूनी प्रक्रिया के अनुसार झगड़ों व विवादों का निपटारा ।

शासन की इन चुनौतियों के समाधान के जिन व्यवस्थाओं का सहारा लिया जाता है उन्हें शासन के अंग कहा जाता है –

शासन के अंग

शासन के तीन अंग है

विधायिका – विधायिका का काम कानूनों का निर्माण करना है । राजतंत्रीय प्रणाली में यह कार्य आमतौर पर राजा के हाथ में होता था तथा राजा की इच्छाओं को ही कानून माना जाता था । धर्मतन्त्रीय प्रणाली में धार्मिक ग्रन्थों में लिखी गयी बातों को कानून का दर्जा दिया जाता था तथा धर्म के सर्वोच्च पदाधिकारियों को धार्मिक आख्यानों का अंतिम व्याख्याकार माना जाता था ।

लेकिन आधुनिक काल में लोकतंत्र की स्थापना के बाद कानूनों का निर्माण जनता की इच्छानुसार किया जाना चाहिए ऐसा माना जाता है लेकिन प्रश्न ये है जनता की इच्छाओं का पता कैसे लगाया जाएं ।

इसके लिए कुछ विशेष व्यवस्थाएं प्रचलित है जैसे जनमत संग्रह (Referendum) तथा प्रतिनिधि लोकतंत्र ( Representative Democracy)भारत में जनता की इच्छाओं को जा नने के लिए दूसरी व्यवस्था यानी प्रतिनिधि लोकतंत्र का सहारा लिया जाता है ।

इस व्यवस्था के अंतर्गत राज्य के भू- भाग के अंदर रहने वाला जनसमुदाय अपने प्रतिनिधियों को चुनकर (प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ) विधायिका या विधानमंडल भेजता है तथा सभी क्षेत्रों से चुनकर आये ऐसे प्रतिनिधि आपसी सहमति से बहुमत के आधार पर कानूनों का निर्माण करते है ।

भारतीय विधायिका (Indian Legislature) संघात्मक ढांचे (Federal Structure) पर आधारित है तथा दो सदनों से मिलकर बनती है राज्यसभा ( इसे upper house भी कहा जाता है ) तथा लोक सभा (Lower House ) I

इसमें निचला सदन यानी लोकसभा सीधे एवम प्रत्यक्ष तौर पर जनता द्वारा चुनी जाती है । तथा सभी क्षेत्रों से चुनकर आये ऐसे प्रतिनिधि आपसी सहमति से बहुमत के आधार पर कानूनों का निर्माण करते है । जबकि राज्यों या प्रान्तों की अधिकतर विधायिकाएं एकसदनीय (Unicameral) है । जिसे विधानसभा कहते है । किसी राज्य विशेष में जरूरत महसूस होने पर दूसरे सदन की विधानपरिषद के तौर पर स्थापना का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 169 में है ।

विधान परिषद वाले राज्य –  तेलंगाना, उत्तर प्रदेश ,बिहार ,महाराष्ट्र ,कर्नाटक ।


*वर्ष 2020 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया अंततः भारत की संसद द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी दी जानी बाकी है । वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 के माध्यम से जम्मू और कश्मीर विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया । हाल में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य में विधान परिषद की स्थापना का निर्णय लिया है ज्ञातव्य है कि 1969 में पश्चिम बंगाल में विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया था । भारतीय विधायिका लोकसभा, राज्यसभा तथा राष्ट्रपति से मिलकर बनती है ।

कार्यपालिका (Executive )

शासन के दूसरे अंग को कार्यपालिका कहते हैं । कार्यपालिका व्यक्तियों का वह समूह है जो विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों के अनुसार शासन चलाते हैं या लागू करते है ।


कार्यपालिका के दो प्रकार है

  1. राजनीतिक कार्यपालिका (Political executive ) – यह कार्यपालिका के सर्वोच्च स्तर पर होती है जिसे जनता निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर चुनती है जैसे भारत में केंद्रीय मंत्रिमंडल । इसके कई प्रकार होते है जैसे अध्यक्षीय कार्यपालिका ( presidential executive ) , संसदीय कार्यपालिका ( Parliamentary Executive ) , दोहरी कार्यपालिका (Dual executive) तथा बहुल कार्यपालिका (Plural Executive)
  2. स्थायी कार्यपालिका – स्थायी कार्यपालिका में वे सभी उच्चाधिकारी शामिल होते हैं जो नौकरशाही (Bureaucracy) के अंग होते हैं । तथा जिनका कार्यकाल के निर्वाचन से कोई सम्बन्ध नहीं है । जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा अन्य सेवाओं के अधिकारी इस श्रेणी में आते है । इस कार्यपालिका में शामिल लोगों को प्रशासनिक कार्यों में दक्षता हासिल होती है तथा ये शासन को सुचारू ढंग से चलाने में राजनीतिक कार्यपालिका की सहायता करते है ।

न्यायपालिका – शासन का तीसरा अंग है न्यायपालिका । इसका कार्य यह है कि यह विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों के अनुसार उसके समक्ष आने वाले विवादों का स्माफन करें । लेकिन न्यायपालिका की आंशिक तौर पर विधायिका की भूमिका में आने लगी है क्योंकि विधायिका द्वारा पास किये जाने वाले कानूनों की जटिलता व अस्पष्टता के कारण न्यायपालिका को उनकी मौलिक व्याख्या करनी पड़ती है अंततः ये व्याख्याएं कानून का रूप ले लेती है जिन्हें निर्णय- कानून (Case Laws) कहा जाता है ।

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वर्तमान समय में न्यायपालिका की बहुआयामी होती भूमिका

वर्तमान समय में न्यायपालिका की बहुआयामी होती भूमिका ने न्यायिक सक्रियतावाद (Judicial Activism) की चर्चा को बढ़ावा दिया है । यह वह स्थिति है जब न्यायपालिका विधायिका तथा कार्यपालिका के लिए निश्चित नकीयर गए कार्यों में भी दखल देने लगती है । भारतीय राज्यवस्था में न्यायिक सक्रियतावाद के बहुत से उदाहरण है जैसे भारत कर सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों ने कई जनहित याचिकाओं (Public Interest Litigations) को आधार बनाकर कई अभूतपूर्व निर्णय दिए है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की मौलिक व्याख्याएं इसका सबसे बड़ा उदाहरण है । हालांकि न्यायिक सक्रियता संविधान द्वारा समर्थित नहीं है ।

                                                                                                                               क्रमशः……

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